उत्साह के साथ बच्चों ने मनाया टेसू झेंझी का पर्व
– टेसू झेंझी के विवाह की परंपरा को बचाए हैं गांव के बच्चे
– प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है पर्व
फोटो परिचय-
फतेहपुर। ब्रज की संस्कृति को जीवंत बनाए रखने वाला टेसू झेंझी का विवाह भी एक त्यौहार और परम्परा से कम नहीं है। यह परंपरा हर वर्ष बच्चों द्वारा शरद पूर्णिमा को निभाई जाती है। बुधवार को टेसू झेंझी की शादी की रश्म पूरी की गई।
शारदीय नवरात्र के बाद पहली पूर्णिमा पर टेसू झेंझी का विवाह होता है। बुधवार को इसे खासकर बच्चों ने पर्व के रूप में मनाया। इसके लिये बकायदा शादी के कार्ड छपवाये जाते हैं और बैंड बाजों की धुन पर बराती नाचते गाते निकलते हैं। आतिशबाजी के बीच द्वारचार की रश्म से शादी शुरू होती है। बुधवार की देरशाम देखा गया कि बच्चों की टोलियों के हाथ में एक सजा धजा मिट्टी का तीन टांग का दूल्हा होता, जिसे टेसू कहते हैं। तीन लकड़ियों के ढांचे पर धड़ रखा होता। उस पर एक टिमटिमाता दीपक जलता। जबकि झेंझी एक मिट्टी की मटकी होती। जिसमें चारों ओर ऊपर से नीचे तक छेद होते हैं। मटकी के अंदर दीपक जलता रहता, छेदों से दीपक की किरणें झेंझी की खूबसूरती को बयान करती हैं। चंदा मांगने आने वाले किशोर किशोरियों से चंदा देने के बदले पारंपरिक गीत सुनने की फरमाइश होती।
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टेसू झेंझी के विवाह की कहानी
गांवों के बुजुर्गाे ने बताया कि एक कथा किवदंती ये भी है कि बर्बरीक को महाभारत का युद्ध देखने आते समय झेंझी से प्रेम हो गया। उन्होंने युद्ध से लौटकर झेंझी से विवाह करने का वचन दिया, लेकिन अपनी मां को दिए वचन, की हारने वाले पक्ष की तरफ से वह युद्ध करेंगे और कौरवों की ओर से युद्ध किया। श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काट दिया।
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झेंझी की पैर पुजाई और कन्यादान भी
झेंझी की शादी की तैयारी के बाद बरात आने पर द्वारचार की रश्म होती है। इसके बाद पैर पुजाई और कन्यादान की रश्म होती है। लेकिन फेरे नहीं होते हैं और फेरों की रश्म के पहले ही टेसू का सिर धड़ से अलग किया जाता है और झेंझी को फोड़ देते हैं। टेसू झेंझी का रात के समय ही नदी तालाब या नहर में विसर्जित किया जाता है।