परिषदीय स्कूलों में रखी खेल किटें, छात्रों को नहीं हो रही मयस्सर , तालों में कैद

   तालों में कैद खेल किटें, स्कूलों में छटपटा रहीं प्रतिभाएं
परिषदीय स्कूलों में रखी खेल किटें, छात्रों को नहीं हो रही मयस्सर
– स्कूलों में नहीं की गई खेल और व्यायाम शिक्षकों की तैनाती
मो. ज़र्रेयाब खान अज़रा न्यूज़  फतेहपुर। बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित परिषदीय विद्यालयों के बच्चों में खेल प्रतिभा हैं लेकिन उनको संसाधन और खेल मैदान न मिल पाने से उनकी प्रतिभा दम तोड़ रही है। स्कूलों में जो खेल किटें खरीदी जाती हैं वह तालों में बंद हैं। अधिकतर स्कूलों में खेल मैदान नहीं हैं, जिनके अपने खेल मैदान है वहां भी बच्चे खेल नहीं पा रहे हैं।
जिले में 2126 परिषदीय विद्यालय हैं। प्रति प्राथमिक विद्यालयों में पांच हजार रुपये और प्रति उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 10 हजार रुपये की खेल किट खरीदी जाती है। शासन की मंशा रहती है कि बच्चे पढ़ाई के साथ साथ खेलों में भी अच्छा कर सकें लेकिन खेल किटों का सही से उपयोग नहीं कराया जाता है। बच्चों को यह खेल किट कभी कभी ही दी जाती हैं। शिक्षक खेल किट को बक्सों में कैद करके रखते हैं। जिससे अधिकारियों को दिखाई जा सकें कि खेल किट खरीदी गई हैं। परिषदीय विद्यालयों में 80 फीसदी बच्चे ग्रामीण होते हैं, इन बच्चों में खेल प्रतिभा हैं लेकिन खेल किट उपलब्ध न होने और खेल मैदान न मिल पाने से बच्चे खेल नहीं पाते हैं। इसलिए बच्चों में जो खेल प्रतिभा है वह निखरने की बजाय दम तोड़ रही हैं। जिले के अधिकतर परिषदीय विद्यालयों में खेल मैदान ही नहीं हैं। इनमें से सैकड़ों विद्यालय तो ऐसे हैं जिनका परिसर भी इतना नहीं है जहां बच्चे छोटे खेल भी खेल सके। बच्चे दौड़, ऊंची कूद, लंबी कूद, कबड्डी, गोला फेंक आदि खेलों से दूर रहते हैं। विद्यालयों में खेलों के प्रति किसी का ध्यान नहीं जाता है, इसलिए जब मंडल स्तरीय खेल प्रतियोगिता होती है तो इसकी पोल खुल जाती है। स्कूलों में खेल प्रतियोगिताओं को लेकर कोई ध्यान नहीं देते हैं।


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व्यायाम शिक्षकों की रहती कमी
परिषदीय विद्यालयों में खेलों को लेकर व्यायाम शिक्षकों का भी आभाव दिखता है। बीते दो वर्ष पहले इन व्यायाम शिक्षकों को उनके मूल स्कूलों में शिक्षण कार्य दिवस तक स्कूलों में पढ़ाने के निर्देश दिए जाने से अब बच्चों को खेल प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है। स्कूलों के शिक्षकों को तो यह भी नहीं मालूम होता है कि किस खेल को कैसे खेला जाए। खेल अनुदेशक भी एक तरह से निष्क्रिय हैं इसलिए बच्चे खेल नहीं खेल पाते हैं।


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जारी होता है खेल कलैंडर
पढ़ाई का सत्र जिस तरह जारी होता है, उसी प्रकार से खेल कलैंडर भी जारी होता है। शासन से खेल कलैंडर तो जारी हो जाता है लेकिन जिले के परिषदीय स्कूलों में कलैंडर के हिसाब से कोई भी खेल गतिविधि नहीं कराई जाती है। इतना जरूर होता है जब ब्लाक स्तर या जिला स्तर की खेल प्रतियोगिताएं होती हैं तो जरूर खानापूर्ति करा दी जाती है। ब्लॉक स्तर पर बीईओ भी इस ओर कोई भी ध्यान नहीं देते हैं।

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