बठिंडा: देशभर के किसानों ने एक बार फिर संघर्ष की हुंकार भरी है। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने केंद्र सरकार की राष्ट्रीय कृषि विपणन नीति ढांचा (एनपीएफएएम) को तीन काले कृषि कानूनों का पुनर्जन्म करार दिया है। एसकेएम की महासभा ने इस नीति को किसानों और राज्य सरकारों के खिलाफ साजिश बताते हुए इसे पूरी ताकत से खारिज करने की घोषणा की।
क्यों विरोध कर रहे हैं किसान?
किसानों का कहना है कि एनपीएफएएम का उद्देश्य सरकारी मंडियों को निजी हाथों में सौंपना है। इससे स्थानीय ग्रामीण मंडियों पर सीधा असर पड़ेगा, और बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां कृषि क्षेत्र पर कब्जा कर लेंगी। नीति के तहत:
1. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कोई गारंटी नहीं है।
2. सरकारी खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है।
3. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देकर किसानों को कंपनियों का गुलाम बनाने की योजना बनाई गई है।
4. नीति विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और विश्व बैंक की शर्तों पर आधारित है, जो भारत के किसानों के हितों के खिलाफ है।
महासभा में बना आंदोलन का खाका
नई दिल्ली के एचकेएस सुरजीत भवन में आयोजित एसकेएम की महासभा में 12 राज्यों के 73 किसान संगठनों के 165 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बैठक में फैसला लिया गया कि 5 मार्च, 2025 से देशभर में पक्के मोर्चे शुरू होंगे।
आंदोलन की प्रमुख रणनीतियां:
8-9 फरवरी: सांसदों के घरों के बाहर प्रदर्शन कर उन्हें किसानों के पक्ष में खड़ा होने की अपील।
5 मार्च से: राज्य की राजधानी, जिला और उपमंडल स्तर पर पक्के मोर्चे।
महापंचायतें और सम्मेलन: इनका आयोजन कर किसानों और आम जनता को आंदोलन से जोड़ा जाएगा।
क्या है किसानों की मांगें?
1. एनपीएफएएम को तुरंत वापस लिया जाए।
2. सभी फसलों के लिए सी2+50% लागत पर एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए।
3. किसानों और कृषि मजदूरों के लिए कर्ज माफी की व्यवस्था हो।
4. 9 दिसंबर 2021 के समझौते में बाकी बचे मुद्दों को पूरा किया जाए।