तैयारी में जुटे कुम्हार, जीवन में दीये फैलाएंगे प्रकाश
– पुरानी परंपरा आज भी है बरकरार
फोटो परिचय- दीये तैयार करता कुम्हार।
मो. ज़र्रेयाब खान अजरा न्यूज़ खागा, फतेहपुर। शारदीय नवरात्र के बाद दशहरा भी हो गया। अब दीपावली की तैयारी जोर-शोर से शुरू हो गई है। दीपावली में भले ही हजारों रुपए की इलेक्ट्रिक झालरों व मोमबत्ती से घरों को रोशन कर लिया जाए, लेकिन मिट्टी के दीए के बिना दीपावली अधूरी ही रहती है। त्योहार को लेकर कुम्हारों में मिट्टी के घड़े के साथ दीयों से अच्छे व्यापार की आस जगी है।
यही वह अवसर होता है, जब मिट्टी के दीए की थोक में बिक्री से कुम्हारों के आशियाने भी खुशी से रोशन होते हैं और इन्हीं त्योहारों में धूम से उनके सपने पूरे होते हैं। अपनी कला का प्रदर्शन कर लोगों के जीवन में मिठास भरने का काम करते हैं। सनातन धर्म में दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीए से घरों को रोशन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। गणेश लक्ष्मी की पूजा के साथ ही घरों के कोनो-कोनो को दिवालियों से सजाकर रोशन किया जाता है। इस वर्ष भी धूमधाम से बनाए जाने वाले महापर्व की दीया बनाने वाले लोगों ने पूरी तैयारी कर ली है। कस्बों और गांव व सड़क किनारे सजी मिट्टी के बर्तनों की दुकानों में मिट्टी की दिवालियां तैयार कर बिक्री की जाने लगी है। हालांकि अच्छी खासी कमाई भी हो रही है। दीए की रोशनी के बिना दीपावली अधूरी मानी जाती है। आधुनिक चकाचौंध में भी सदियों से चली आ रही मिट्टी के दिय जलाने की परंपरा आज भी बरकरार है। पूजा-पाठ से लेकर लोग घरों को सजाने में भी मिट्टी के दीए का इस्तेमाल अधिक करते हैं। हथगाम ब्लाक के संवत गांव निवासी कुम्हार धनराज ने बताया कि दीपावली में तीन प्रकार के दीये उपयोग में लाए जाते हैं। बाजारों में सबसे अधिक छोटे दियों की मांग रहती है। बताया कि दीपावली पर दीए की बिक्री अधिक होती है। आम दिनों मटका, सुराही, गुल्लक बनाकर परिवार का पालन पोषण करते हैं।