जब तक किसानों की मांगें मानी नहीं जातीं, जारी रहेगा अनशन : डल्लेवाल

संगरूर: किसानी मांगों को लेकर आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने 64वें दिन आज कहा कि जब तक सरकार किसानों की मांगें नहीं मान लेती, तब तक वह अपना अनशन जारी रखेंगे। डल्लेवाल ने विभिन्न किसान संगठनों द्वारा ‘संयुक्त मोर्चा’ बनाने में हो रही देरी पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि बार-बार बैठकें करना अच्छी बात नहीं हैं। उन्होंने कहा कि लोगों की भावना है कि सभी किसान संगठन केंद्र सरकार के खिलाफ मिलकर लड़ें। आज खनौरी बार्डर पर श्री आखंडपाठ शुरू करवाया गया जिसके भोग 30 जनवरी को डाले जाएंगे। आज 24 दिन बाद डल्लेवाल ने पहली बार मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि 14 फरवरी को बातचीत के लिए सरकार के निमंत्रण के बाद वह केवल चिकित्सा सहायता लेने के लिए सहमत हुए हैं। उल्लेखनीय है कि आज से पहले चार जनवरी को यहां किसान महापंचायत को संबोधित किया था । उसके बाद उनकी हालत गंभीर बनती गई और डाकटरों ने उनको बोलने के लिए मना कर दिया था।
डल्लेवाल ने कहा कि फिलहाल उनका स्वास्थ्य उन्हें व्यक्तिगत तौर पर चंडीगढ़ जाकर बातचीत में शामिल होने की इजाजत नहीं देता। किसान नेता ने कहा, ‘मैं देश भर के किसानों से अपील करता हूं, जो एमएसपी की कानूनी गारंटी के मुद्दे पर हमारा समर्थन कर रहे हैं, वे 12 फरवरी को खनौरी बार्डर पर पहुंचें, क्योंकि उस दिन हमारे आंदोलन को एक साल पूरा हो जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि खनौरी सीमा पर भारी भीड़ से उनको नई ऊर्जा मिलेगी और केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत में शारीरिक रूप से उपस्थित होने की ताकत भी मिलेगी।
पंजाब के पानी और खेती को बचाने के लिए आंदोलन किया शुरू
डल्लेवाल ने देश भर के किसानों से 11, 12, 13 की महापंचायत में भाग लेने का आह्वान किया और कहा कि देश भर के किसानों को देखकर उन्हें नई ऊर्जा मिलती है। वह चाहते हैं कि 12 फरवरी को होने वाली महापंचायत में किसान भाग लें। खनौरी बॉर्डर पर बड़ी संख्या में किसान, मजदूर व अन्य वर्ग शामिल होकर ऊर्जा प्रदान करें। 14 फरवरी तक अगर वह शारीरिक रूप से सक्षम होंगे तो बैठक में शामिल होंगे और किसानों से बात करेंगे। डल्लेवाल ने कहा कि दिल्ली में पिछले किसान आंदोलन के खत्म होने के बाद दूसरे राज्यों के किसानों ने पंजाब के किसानों पर तंज कसा था कि वे एमएसपी की मांग पूरी किए बिना आंदोलन अधूरा छोड़ रहे हैं। लेकिन वह चाहते थे कि पंजाब के सिर पर ऐसा कलंक न लगे। वाहेगुरु ने पंजाब के पानी और खेती को बचाने के लिए फिर से यह आंदोलन शुरू किया।

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