क़ानून की अवमानना करने वाले जज पर एससी करे कार्यवाई- शाहनवाज़

  निचली अदालत की करवाई पर रोक का फैसला अपर्याप्त, क़ानून की अवमानना करने वाले जज पर एससी करे कार्यवाई- शाहनवाज़ आलममुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा पर अदालतों का स्वतः संज्ञान न लेना पैटर्न बन चुका हैजामा मस्जिद के साथ हरिहर मन्दिर लिखकर मीडिया उसे जबरन विवादित बनाने में लगी है, एडिटर्स गिल्ड और प्रेस परिषद भी अपनी जिम्मेदारी समझें

लखनऊ, 29 नवंबर 2024. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा संभल की जिला अदालत पर जामा मस्जिद मामले पर कोई अग्रिम कार्यवाई करने से रोक लगाने का स्वागत किया है।शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा कि संभल की ऐतिहासिक जामा मस्जिद पर किसी तरह का कोई विवाद न होने के कारण पहले से कोई भी वाद लंबित नहीं था। लेकिन बावजूद इसके जिला सिविल जज आदित्य सिंह ने पूजा स्थल अधिनियम की अवमानना करते हुए मस्जिद के सर्वे का ग़ैर क़ानूनी निर्देश दे दिया। जिसपर सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाई करनी चाहिए थी लेकिन कोर्ट पीड़ितों के याचिका दायर करने पर ही सक्रिय हो पाया।

उन्होंने कहा कि यह एक पैटर्न बनता जा रहा है कि मुसलमानों के खिलाफ़ राज्य और राज्य प्रायोजित तत्वों द्वारा हिंसा की घटनाओं में जब तक पीड़ित पक्ष याचिका नहीं डालता अदालतें स्वतः संज्ञान नहीं लेतीं। जबकि यही जज लोग पर्यावरण संबंधित मामलों में अखबार में खबर पढ़कर भी स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाई कर देते हैं। उन्होंने कहा कि आख़िर संविधान में आर्टिकल 32 और 226 किस लिए रखे गए हैं जो न्यायपालिका को जनहित के मुद्दों पर स्वतः हस्तक्षेप का अधिकार देते हैं। शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के सामने यह अवसर है कि संभल प्रकरण पर सिविल जज आदित्य सिंह के खिलाफ़ कार्यवाई कर पूजा स्थल अधिनियम की अवमानना करने वाले जजों को सख़्त संदेश दें। उन्होंने कहा कि उनके सामने अपने पूर्ववर्ती सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के सरकार के राजनीतिक एजेंडे को सूट करने वाले जजों को प्रोत्साहन देने के अपराध से भी अपने पद को दोषमुक्त करने का अवसर है। शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संघ और भाजपा के एजेंडे पर काम करने वाली मीडिया संभल की जामा मस्जिद के साथ अब हरिहर मन्दिर विवाद लिखकर जनमानस में मस्जिद के मंदिर होने की धारणा फैला रहे हैं। आगे चल कर यही मीडिया उसे विवादित ढांचा भी कह कर उसे तोड़ने के लिए बहुसंख्यक समाज में उत्तेजना और तर्क पैदा करेगी जैसा कि बाबरी मस्जिद के साथ हुआ था। उन्होंने एडिटर्स गिल्ड और प्रेस परिषद से भी ऐसी रिपोर्टिंग पर लगाम लगाने की अपील की।

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